रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (आरडीएस) एक श्वसन संबंधी विकार है, जिससे सामान्य रूप से नवजात शिशु प्रभावित होते हैं। जिन शिशुओं का जन्म गर्भावस्था के 28वें सप्ताह से पहले हो जाता है उन्हें आरडीएस का खतरा अधिक होता है। वहीं जिन बच्चोंं का जन्म समय से होता है उनमें यह समस्या बहुत कम ही देखने को मिलती है। समय से पहले जन्मे बच्चों के फेफड़े पर्याप्त सर्फेक्टेंट बनाने में सक्षम नहीं होते हैं, यही कारण है कि इन शिशुओं को आरडीएस का खतरा रहता है। सर्फेक्टेंट एक झागदार पदार्थ है जो फेफड़ों को पूरी तरह से विस्तारित रखता है ताकि नवजात शिशु पैदा होते ही सांस ले सकें। पर्याप्त सर्फेक्टेंट के अभाव में फेफड़े कोलैप्स हो जाते हैं और शिशु को सांस लेने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इस स्थिति में अंगों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भी नहीं पहुंच पाती है, जिससे अंगों को क्षति पहुंचने का खतरा बना रहता है।
आरडीएस आमतौर पर जन्म के पहले 24 घंटों में विकसित होता है। गर्भावधि के 36 सप्ताह के होने तक यदि शिशु में सांस लेने की समस्या बनी रहती है तो उनमें ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया का निदान किया जा सकता है। यह भी एक श्वसन संबंधी समस्या है जो समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को होती है। जिन शिशुओं में आरडीएस का निदान होता है उन्हें अतिरिक्त चिकित्सकीय सहायता के साथ घर पर भी विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
इस लेख में हम रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।