स्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी संबंधी एक विकार होता है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन (मोड़) आ जाता है। एक तरफ से देखने पर रीढ़ की हड्डी में सामान्य मोड़ दिखाई देता है और सामने से देखने पर हड्डी सीधी दिखाई पड़ती है। स्कोलियोसिस के कारण रीढ़ की हड्डी में एक तरफ टेढ़ापन आ जाता है। यह रीढ़ की हड्डी के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह छाती के पीछे या पीठ के पास की रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है।
रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन होने का खतरा लड़कों के मुकाबले लड़कियों में दो गुना अधिक होता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन लगभग 10 साल की उम्र के बाद अधिक देखा जाता है। इस स्थिति में कई लक्षण भी शामिल हो सकते हैं, जैसे कंधे बराबर ना होना, सिर दोनों कंधों के बीच में ना होकर एक तरफ होना, कूल्हे की हड्डियां बराबर जगह पर ना होना और पसलियां असामान्य रूप से बाहर आना आदि। इस स्थिति की जांच करने के लिए मरीज का शारीरिक परीक्षण किया जाता है और कुछ इमेजिंग टेस्ट भी किये जाते हैं जैसे एक्स रे, सीटी स्कैन और एमआरआई। यदि एक्स रे के दौरान रीढ़ की हड्डी में 10 डिग्री या उससे अधिक टेढ़ापन है, तो इस स्थिति को स्कोलियोसिस के रूप में निर्धारित किया जाता है। इसके इलाज करने के लिए कास्टिंग (एक विशेष पट्टी), ब्रेसिस और कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्कोलियोसिस से होने वाली जटिलताएं आमतौर पर अधिक गंभीर नहीं होती है यह निर्भर करता है कि समस्या का कितनी जल्दी पता लगाकर उसका इलाज शुरु कर दिया गया है। स्कोलियोसिस के लिए अभी तक कोई निश्चित इलाज नहीं मिल पाया है, लेकिन इससे होने वाले लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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