टुलारेमिया क्या होता है?
टुलारेमिया एक दुर्लभ संक्रमण है, जो आमतौर पर त्वचा, आंख, लिम्फ नोड्स और फेफड़ों को प्रभावित करता है। टुलारेमिया को रेबिट फीवर और डीअर फ्लाई फिवर भी कहा जाता है। यह फ्रांसिसेला टुलारेंसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
टुलारेमिया के लक्षण क्या होते हैं?
टुलारेमिया के बैक्टीरिया के संपर्क में आने वाले लोग तीन से पांच दिन के भीतर बीमार पड़ जाते हैं, कुछ लोगों को बीमार पड़ने में 14 दिन तक का समय भी लग जाता है। टुलारेमिया कई प्रकार का होता है। आपको किस प्रकार का टुलारेमिया हुआ है, यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह से इसके बैक्टीरिया के संपर्क में आए हैं और बैक्टीरिया आपके शरीर में किस प्रकार गया है। हर प्रकार के टुलारेमिया संक्रमण के अलग-अलग प्रकार हो सकते हैं।
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टुलारेमिया क्यों होता है?
टुलारेमिया शरीर में अपने आप विकसित नहीं होता और ना ही यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। हालांकि टुलारेमिया दुनियाभर के किसी भी क्षेत्र में हो जाता है, लेकिन खासतौर पर यह ग्रामीण क्षेत्रों अधिक होता है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पक्षी व अन्य कई स्तनधारी जानवर फ्रांसिसेला टुलारेंसिस नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होते हैं। यह बैक्टीरिया मिट्टी, पानी और मरे हुऐ जानवर में एक हफ्ते तक जीवित रह सकता है। कुछ ऐसे जानवर हैं, जिनके शरीर में यह बैक्टीरिया हो सकता है:
- खरगोश व हिरण आदि के बालों में पाए जाने वाले कीड़े
- भूरा भालू
- खरगोश
- चूहे
- घरों से बाहर जाने वाली बिल्लियां
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टुलारेमिया का परीक्षण कैसे किया जाता है?
टुलारेसिस का पता लगाना थोड़ा कठिन हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण कईं अन्य प्रकार के रोगों से मिलते-झुलते होते हैं। डॉक्टर आपके शरीर के अंदर बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए कुछ प्रकार के टेस्ट कर सकते हैं। डॉक्टर निमोनिया आदि की जांच करने के लिए छाती का एक्स रे करवाने के लिए भी कह सकते हैं।
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टुलारेमिया का इलाज कैसे किया जाता है?
टुलारेमिया का इलाज कुछ प्रकार की एंटीबायोटिक्स दवाओं के साथ किया जाता है, जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन और जेंटामाइसिन। ये दवाएं मरीज को इंजेक्शन के द्वारा या सीधे नस में दी जाती हैं। कुछ प्रकार के टुलारेमिया का इलाज करते समय डॉक्टर कुछ ओरल (मुंह द्वारा खाई जाने वाली) एंटीबायोटिक दवाएं भी लिख सकते हैं।
कुछ गंभीर मामलों में लिम्फ नोड्स के द्रव को निकालने के लिए या त्वचा से संक्रमित ऊतकों को शरीर से अलग करने के लिए ऑपरेशन करवाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
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