काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) क्या होता है?
काला मोतियाबिंद को ग्लूकोमा या काला मोतिया भी कहा जाता है। काला मोतियाबिंद आँखों में होने वाली एक गंभीर समस्या है। हमारी आँखों में ऑप्टिक नर्व (optic nerve) होती है, जो किसी भी वस्तु का चित्र दिमाग तक पहुँचाती है। ग्लूकोमा के दौरान हमारी आँखों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। लगातार बढ़ते दबाव के कारण हमारी ऑप्टिक नर्व नष्ट हो सकती है। इस दबाव को इंट्रा-ऑक्युलर प्रेशर (intra-ocular pressure) कहते हैं। यदि ऑप्टिक नर्व और आँखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले इस दबाव को नियंत्रित न किया जाये तो व्यक्ति हमेशा के लिए अँधा हो सकता है।
अंधेपन के प्रमुख कारकों में से ग्लूकोमा एक है। ये किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बूढ़े लोगों में अधिकतर पाया जाता है। शुरुआत में ग्लूकोमा का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। इसका असर बहुत धीमी गति से होता है। जब तक काला मोतिया गंभीर स्थिति में नहीं पहुँच जाता, तब तक व्यक्ति को अपनी दृष्टि में कोई विकार नज़र नहीं आता।
ग्लूकोमा के कारण आँखों की खोई हुई रोशनी दोबारा वापस नहीं आ सकती। अतः यह ज़रूरी है कि आप नियमित रूप से अपनी आँखों की जाँच करवायें और इन पर पड़ने वाले दवाब का भी परीक्षण करवाते रहें। अगर ग्लूकोमा की पहचान शुरुआत में ही कर ली जाये तो दृष्टि को कमज़ोर होने से रोका जा सकता है।
काला मोतियाबिंद का सही ढंग से निदान करने के लिए आपके डॉक्टर को थोड़ा ज़्यादा ध्यान देना पड़ेगा। आपको ग्लूकोमा हुआ है या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए डॉक्टर को आपकी आँखों पर पड़ने वाले दवाब की जाँच करनी होगी। अगर आपको ये बीमारी है तो आपको पूरी जिंदगी उसके उपचार की ज़रुरत पद सकती है।
भारत में काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) की स्तिथि
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग 40 साल या उस से ज़्यादा उम्र के 1 करोड़ से ज़्यादा लोग काला मोतियाबिंद से पीड़ित हैं। और यह सभी सही उपचार के बिना अपनी दृष्टि खो बैठेंगे। तकरीबन ३ करोड़ अन्य लोगों को प्राथमिक (क्रोनिक) ओपन-एंगल ग्लूकोमा है या होने का जोखिम है। कुल मिलकर इस आयुवर्ग के 31 करोड़ लोगों में से 4 करोड़ लोग ग्लूकोमा होने के खतरे के साथ जी रहे हैं।