त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) - Scleroderma in Hindi

Dr. Ayush PandeyMBBS,PG Diploma

October 25, 2018

January 30, 2024

त्वग्काठिन्य
त्वग्काठिन्य

त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) क्या है?

स्क्लेरोडर्मा एक असाधारण स्थिति है, जिसमें शरीर में कुछ जगहों से त्वचा मोटी बन जाती है। कभी-कभी इसके कारण शरीर के अंदरूनी अंगों और रक्त वाहिकाओं संबंधी समस्याएं भी होने लग जाती है। यह एक दीर्घकालिक रोग है, जो लंबे समय तक रहता है और कभी-कभी जीवन भर रहता है। 

स्क्लेरोडर्मा के लक्षण क्या हैं?

स्क्लेरोडर्मा से शरीर का जो भाग प्रभावित होता है, उसी के आधार पर रोग के लक्षण पैदा होते हैं। कुछ ऐसे लक्षण स्क्लेरोडर्मा में आमतौर देखे जाते हैं जैसे, त्वचा कठोर व मोटी हो जाना जो ऊपर से चमकदार दिखाई देने लग जाती है। इसमें उंगलियों व अगूठे के जोड़ लाल, सफेद या नीले रंग के हो जाते हैं, इस स्थिति को रेनॉड फेनॉमिनॉन (Raynaud's phenomenon) कहा जाता है। इसके अलावा इसमें उंगलियों के अगले हिस्से में छाले या घाव भी बनने लग जाते हैं। 

स्क्लेरोडर्मा क्यों होता है?

स्क्लेरोडर्मा के निश्चित कारण का अभी तक पता नहीं चला है। ऐसा माना जाता है कि यह कुछ जीन संबंधी समस्याओं के कारण भी हो सकता है या यदि आपके परिवार में पहले किसी को यह रोग है, तो भी आपको स्क्लेरोडर्मा होने का खतरा बढ़ जाता है। 

स्क्लेरोडर्मा के कई रूप होते हैं और यह शरीर के कई अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित कर सकता है, इसलिए इसका पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। स्क्लेरोडर्मा का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर आपके लक्षणों की जांच करेंगे और आपके स्वास्थ्य संंबंधी स्थिति के बारे में पूछेंगे। रोग की पुष्टि करने के लिए कभी-कभी कुछ अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं, जैसे एक्स रे कुछ प्रकार के खून टेस्ट, बायोप्सी (त्वचा से सेंपल लेना)। इसके अलावा परीक्षण के दौरान आपके हृदय, फेफड़े और भोजन नली की जांच की जा सकती है। 

स्क्लेरोडर्मा का इलाज कैसे होता है?

स्क्लेरोडर्मा का इलाज संभव नहीं है, लेकिन कुछ प्रकार के उपचारों की मदद से इस से होने वाले लक्षणों को कम किया जा सकता है। स्क्लेरोडर्मा के इलाज का मुख्य लक्ष्य इसके लक्षणों को शांत करना, स्थिति को और बदतर होने से रोकना और शरीर के प्रभावित हिस्सों का इस्तेमाल करने में मदद करना होता है। 

स्क्लेरोडर्मा से कई प्रकार की जटिलताएं हो सकती है, जिनमें से कुछ गंभीर भी होती है। इस रोग से होने वाली जटिलताएं मुख्य रूप से शरीर के इन भागों को प्रभावित करती हैं जैसे उंगलियों का अगला भाग, फेफड़े, गुर्दे, हृदय, दांत, पाचन प्रणाली और यौन क्रियाएं आदि। 

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) क्या है - What is Scleroderma in Hindi

त्वग्काठिन्य रोग क्या है?

स्क्लेरोडर्मा कोई साधारण स्थिति नहीं है शरीर के कुछ भागों की त्वचा सख्त व मोटी हो जाती है और कभी-कभी अंदरुनी व रक्त वाहिकाओं संबंधी समस्याएं भी पैदा कर देती है। त्वग्काठिन्य लंबे समय तक रहने वाला और लगातार बढ़ने वाला रोग है। समय के साथ-साथ यह स्थिति बदतर होती जाती है।

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) के प्रकार - Types of Scleroderma in Hindi

त्वग्काठिन्य रोग कितने प्रकार का होता है?

यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:

  • स्थानीय त्वग्काठिन्य रोग:
    इसे लोकलाइज्ड स्क्लेरोडर्मा भी कहा जाता है। त्वग्काठिन्य का यह प्रकार आमतौर पर त्वचा को ही प्रभावित करता है और इसे स्क्लेरोडर्मा का हल्का प्रकार माना जाता है। स्थानीय त्वग्काठिन्य होने पर त्वचा सख्त व मोटी होने लग जाती है। कभी-कभी सख्त हुई त्वचा के नीचे की मांसपेशियों व जोड़ों में अकड़न आ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके ऊपर की त्वचा सख्त होने के कारण वे पूरी तरह से हिल ढुल नहीं पाती हैं। (और पढ़ें - जोड़ों में दर्द के घरेलू उपाय)
     
  • प्रणालीगत त्वग्काठिन्य:
    इसे सिस्टमिक स्क्लेरोडर्मा भी कहा जाता है, पूरे शरीर में मौजूद कनेक्टिव टिश्यु (संयोजी ऊतकों) को प्रभावित कर सकता है। स्क्लेरोडर्मा के इस प्रकार में त्वचा का रंग बदल जाता है और इससे शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग भी प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें हृदय, फेफड़े, गुर्दे, पाचन तंत्र, जोड़ व मांसपेशियां आदि शामिल हैं।

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) के लक्षण - Scleroderma Symptoms in Hindi

स्क्लेरोडर्मा के लक्षण क्या हैं?

त्वग्काठिन्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति को होने वाले लक्षण हल्के से गंभीर व कमजोर कर देने वाले हो सकते हैं, कुछ मामलों में इससे जीवन के लिए हानिकारक लक्षण भी पैदा हो सकते हैं। स्क्लेरोडर्मा के लक्षण उसके प्रकार व गंभीरता और यह रोग शरीर के किस भाग में विकसित हुआ है, आदि पर निर्भर करते हैं। स्क्लेरोडर्मा के लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति व समय के अनुसार भी अलग-अलग विकसित हो सकते हैं। इसके कुछ लक्षण अन्य समस्या व विकारों से संबंधित हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं: 

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डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

स्क्लेरोडर्मा की जल्द से जल्द जांच करवा कर किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाने से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है और कोई स्थायी क्षति होने से रोकथाम की जा सकती है। त्वग्काठिन्य की गंभीरता इस पर निर्भर करती है कि शरीर का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और कितना प्रभावित हुआ है। 

यदि आपको रेनॉड फिनोमिनन के साथ-साथ हाथों की त्वचा के रंग में बदलाव और सांस लेने में कठिनाई महसूस हो रही है तो आपको डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए।

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) के कारण व जोखिम कारक - Scleroderma Causes & Risk Factors in Hindi

त्वग्काठिन्य क्यों होता है?

डॉक्टरों के स्क्लेरोडर्मा के कारण का पता नहीं होता है। यह स्व: प्रतिरक्षित रोगों के समूह का रोग है। ऐसा तब होता है जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के किसी अंग या त्वचा को हानिकारक समझ कर उसको क्षति पहुंचाने लग जाती है। इस स्थिति में प्रभावित अंग या त्वचा में सूजन व लालिमा हो जाती है।

सामान्य तौर पर प्रतिरक्षा प्रणाली का काम शरीर में घुसने वाले या संक्रमण फैलाने वाले किसी भी रोगाणु से लड़ना होता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर में कुछ ऐसा मिलता है, जो शरीर का नहीं होता है तो यह उस पर प्रतिक्रिया करने लग जाती है और जब इन्फेक्शन खत्म हो जाता है तो यह शांत हो जाती है। 

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ऐसा भी माना जाता है कि जब प्रतिरक्षा प्रणाली का कोई हिस्सा अधिक उत्तेजित या नियंत्रण के बाहर हो जाता है तो स्क्लेरोडर्मा रोग हो जाता है। ऐसी स्थिति में संयोजी ऊतकों में मौजूद कोशिकाएं अधिक मात्रा में कोलेजन (Collagen) बनाने लग जाती हैं जिससे ऊतकों पर स्कार या निशान बनने लग जाते हैं (फाइब्रोसिस)। 

कोलेजन एक मुख्य संरचनात्मक प्रोटीन होता है जिससे ऊतक बनने लग जाते हैं। डॉक्टरों के पास इस बारे में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि इतनी अधिक मात्रा में कोलेजन बनने का कारण क्या है। स्क्लेरोडर्मा के सटीक कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है। 

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त्वग्काठिन्य रोग होने का खतरा कब होता है?

कुछ स्थितियां हैं, जिनमें स्क्लेरोडर्मा होने के जोखिम बढ़ जाते हैं:

  • स्क्लेरोडर्मा पुरुषों के मुकाबले महिलाओ को अधिक होता है। 
  • यदि किसी व्यक्ति को या उसके परिवार में किसी को सिस्टमिक लुपस एरिथेमेटोसस जैसा कोई स्व प्रतिरक्षित रोग है, तो स्क्लेरोडर्मा रोग होने के जोखिम बढ़ जाते हैं। 
  • उम्र भी स्क्लेरोडर्मा विकसित होने का एक जोखिम हो सकता है, 30 से 50 साल की उम्र के लोगों को यह रोग होने के जोखिम अधिक होते हैं। 
  • कुछ प्रकार के केमिकल हैं जिनके संपर्क में आने से भी त्वग्काठिन्य रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। कोयले के खनन व सोने के खनन आदि में काम करने वाले लोगों में स्क्लेरोडर्मा रोग विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • उद्योगों में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले केमिकल जो स्क्लेरोडर्मा रोग होने के जोखिम बढ़ा देते हैं, इनमें निम्नलिखित केमिकल शामिल हो सकते हैं:
    • केटोन
    • सीलिका
    • रेसिन
    • वेल्डिंग से निकलने वाला धुआं
    • एरोमेटिक सोल्वेंट्स
    • क्लोरिनेटेड सोल्वेंट्स

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) के बचाव - Prevention of Scleroderma in Hindi

त्वग्काठिन्य से बचाव कैसे करें?

स्क्लेरोडर्मा की रोकथाम करना संभव नहीं है। हालांकि इससे होने वाले लक्षणों को नियंत्रित करने या कम करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, जैसे:

  • एक्टिव रहें:
    व्यायाम करने से आपका ब्लड सर्कुलेशन (रक्त परिसंचरण) ठीक होता है, शरीर लचीला हो जाता है और अकड़न कम हो जाती है। रेंज ऑफ मोशन एक्सरसाइज त्वचा व जोड़ों में लचीलता बनाए रखती हैं। (और पढ़ें - व्यायाम करने का सही समय)
     
  • धूम्रपान ना करें:
    सिगरेट आदि पीने से रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने लग जाती हैं, जिससे रेनॉड डिजीज जैसी समस्याएं और बदतर होने लग जाती हैं। धूम्रपान करने से रक्त वाहिकाएं स्थायी रूप से भी संकुचित हो सकती हैं। (और पढ़ें - सिगरेट कैसे छोड़े)
     
  • सीने में जलन की रोकथाम करें:
    जिन खाद्य पदार्थों के खाने से आपके सीने में जलन होने लगती है, उन पदार्थों को ना खाएं। देर रात के समय खाना ना खाएं। सोने के दौरान सिर को थोड़ा ऊपर रखें ताकि पेट में मौजूद अम्ल भोजन नली में ना आ सकें। एंटासिड्स दवाओं की मदद से भी सीने में जलन के लक्षणों को कम किया जा सकता है। (और पढ़ें - सीने में जलन के उपाय)
     
  • जुकाम से बचें:
    ठंडे वातावरण से अपने हाथों को बचा कर रखने के लिए दस्ताने पहन कर रखें, यहां तक कि फ्रिज से कुछ निकालने के लिए भी दस्ताने पहन लें। यदि आप ठंड में बाहर हैं, तो मोटे कपड़े पहनें और अपने चेहरे को गर्म कपड़ों से ढक कर रखें। (और पढ़ें - सर्दियों में त्वचा की देखभाल कैसे करें)
     
  • रेनॉड फिनोमिनन को नियंत्रित रखें:
    जितना हो सके ठंडे वातावरण से बचें और अचानक से तापमान भी ना बदलें। अपने शरीर को गर्म रखें, पैरों में जुराबें व हाथों में दस्ताने पहनें।
     
  • अपनी त्वचा की देखभाल करें:
    अधिक शक्तिशाली डिटेर्जेंट आदि का उपयोग ना करें, क्योंकि ये त्वचा को क्षति पहुंचा सकते हैं। त्वचा में इन्फेक्शन व रुखापन होने से बचाव रखने के लिए उसे साफ व नम रखें। (और पढ़ें - रूखी त्वचा का इलाज)
     
  • सिगरेट के धुएं से बचें:
    सिगरेट ना पिएं और सिगरेट पी रहे व्यक्ति के संपर्क में भी ना आएं। क्योंकि सिगरेट का धुआं त्वचा में खून के बहाव को प्रभावित कर देता है। (और पढ़ें - निकोटीन के नुकसान)
     
  • तनाव को नियंत्रित करें:
    शरीर को पर्याप्त मात्रा में आराम देकर रिलैक्स रखें। काम करने व आराम करने के समय को सही संतुलन में रखें। आप इस बारे में डॉक्टर से भी पूछ सकते हैं। (और पढ़ें - तनाव का इलाज)
     
  • स्वस्थ आहार खाएं:
    एक बार में अधिक मात्रा में खाने की बजाए थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अधिक बार खाएं। इसकी मदद से निगलने में कठिनाई या फिर सीने में जलन संबंधी किसी समस्या से आराम मिल जाता है।

(और पढ़ें - तनाव दूर करने के घरेलू उपाय)

त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) का परीक्षण - Diagnosis of Scleroderma in Hindi

स्क्लेरोडर्मा का परीक्षण कैसे करें?

त्वग्काठिन्य की जांच करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि यह शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित कर देता है जिससे इसकी गलत पहचान हो सकती है। उदाहरण के लिए यह जोड़ों को प्रभावित करता है जिससे रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसा प्रतीत हो सकता है। 

परीक्षण के दौरान डॉक्टर आपके व आपके परिवार की स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी लेंगे और फिर आपका शारीरिक परीक्षण करेंगे। परीक्षण के दौरान डॉक्टर आपके लक्षणों की पहचान करेंगे, खासकर त्वचा सख्त व मोटी होना या त्वचा का रंग बिगड़ना आदि लक्षणों का पता लगाया जाता है। यदि डॉक्टरों को स्क्लेरोडर्मा होने पर संदेह हो रहा है, तो उसकी पुष्टि करने के लिए और साथ ही साथ उसकी गंभीरता का पता लगाने के लिए कुछ प्रकार के टेस्ट किए जा सकते हैं। त्वग्काठिन्य रोग का परीक्षण करने के लिए निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं:

  • खून टेस्ट:
    प्रतिरक्षा प्रणाली के कारकों का स्तर बढ़ने की स्थिति को एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडीज भी कहा जा सकता है। ये स्क्लेरोडर्मा से ग्रस्त ज्यादातर मरीजों में पाई जाती हैं। (और पढ़ें - एसजीपीटी टेस्ट क्या है)
     
  • इकोकार्डियोग्राम (हृदय का अल्ट्रासोनोग्राम):
    डॉक्टर हर 6 से 12 महीने में एक बार यह टेस्ट करवाने का सुझाव देते हैं। इस टेस्ट की मदद से पल्मोनरी हाइपरटेंशन या कंजेस्टिव हार्ट फेलियर जैसी जटिलताओं का पता लगा लिया जाता है। (और पढ़ें - इको टेस्ट क्या है)
     
  • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल टेस्ट:
    त्वग्काठिन्य रोग भोजन नली की मांसपेशियों के साथ-साथ आंतों की परत को भी प्रभावित कर सकता है। जिसके कारण निगलने में कठिनाई व सीने में जलन जैसी समस्याएं होने लग जाती हैं। इसके अलावा पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता और आंतों के कार्य भी प्रभावित हो जाते हैं। (और पढ़ें - क्रिएटिनिन टेस्ट क्या है)
     
  • किडनी फंक्शन टेस्ट:
    जब स्क्लेरोडर्मा किडनी को प्रभावित करता है, तो इसके परिणामस्वरूप ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और पेशाब के साथ प्रोटीन शरीर से बाहर जाने लग जाते हैं। स्क्लेरोडर्मा के कुछ अत्यधिक गंभीर मामलों में ब्लड प्रेशर काफी तीव्रता से बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप किडनी फेल हो जाती है। खून टेस्ट के माध्यम से किडनी फंक्शन की जांच हो सकती है। (और पढ़ें - किडनी फंक्शन टेस्ट क्या है)
     
  • पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट:
    फेफड़े कितने अच्छे से काम कर पा रहे हैं, इसका पता लगाने के लिए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट किया जाता है। यदि स्क्लेरोडर्मा होने का संदेह हो रहा है या फिर उसकी पुष्टि हो गई है, तो यह पता लगाना जरूरी है कि कहीं यह फेफड़ों तक तो नहीं फैल गई है और कहीं इससे स्कार ऊतक तो नहीं बनने लगे हैं। (और पढ़ें - एचबीए1सी टेस्ट क्या है)
     
  • एक्स रे या सीटी स्कैन:
    फेफड़ों की क्षति का पता लगाने के लिए मरीज का एक्स रे या सीटी स्कैन किया जा सकता है। (और पढ़ें - लिवर फंक्शन टेस्ट क्या है)
     
  • इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम:
    स्क्लेरोडर्मा से हृदय के ऊतकों में स्कार बनने लग सकते हैं, जिसके कारण कंजेस्टिव हार्ट फेलियर या हृदय की असाधारण विद्युत गतिविधि जैसी समस्या पैदा हो जाती है। स्क्लेरोडर्मा से आपका हृदय प्रभावित हुआ है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट किया जाता है। (और पढ़ें - एचएसजी टेस्ट क्या है)
     
  • एंडोस्कोपी:
    इस टेस्ट में एक लचीली व पतली ट्यूब को शरीर के अंदर डाला जाता है। ट्यूब के सिरे पर कैमरा व लाइट लगी होती है। इस ट्यूब की मदद से भोजन नली व आंतों की जांच की जाती है। 

(और पढ़ें - एंडोस्कोपी क्या है)

त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) का इलाज - Scleroderma Treatment in Hindi

त्वग्काठिन्य का इलाज कैसे किया जाता है?

स्क्लेरोडर्मा का इलाज संभव नहीं है, लेकिन इससे पैदा होने वाले लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए कुछ इलाज उपलब्ध हैं। इसके लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित दवाएं दे सकते हैं: 

  • एनएसएआईडी (नॉन स्टेरॉयडल एंटी इंफ्लेमेटरी) दवाएं सूजन व दर्द को कम करने में मदद करती हैं। इनमें इबुप्रोफेन व एस्पिरिन आदि शामिल हैं।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को रोकने के लिए स्टेरॉयड व अन्य दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इन दवाओं की मदद से मांसपेशियों, जोड़ों व अन्य अंदरुनी अंगों संबंधी समस्याएं कम हो जाती हैं। (और पढ़ें - प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने के उपाय)
  • प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने वाली दवाएं जैसे मायकोफेनोलेट, सायक्लोफोस्फेमाइड या मेथोट्रेक्सेट आदि।
  • आर्थराइटिस का इलाज करने के लिए हाइड्रोक्लोरोक्विन का उपयोग किया जाता है।
  • डॉक्टर ऐसी दवाएं भी दे सकते हैं, जो उंगलियों में खून के बहाव को बढ़ा देती हैं।
  • ब्लड प्रेशर को सामान्य स्तर पर लाने वाली दवाएं देना। (और पढ़ें - हाई ब्लड प्रेशर डाइट चार्ट)
  • फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं को खोलने वाली दवाएं, इससे स्कार ऊतक बनने से रोकथाम की जा सकती है।
  • सीने में जलन की दवाएं।

(और पढ़ें - छाती में जलन के लिए क्या करें)

स्क्लेरोडर्मा के लिए अन्य उपचार: 

यदि स्क्लेरोडर्मा को समय पर नियंत्रित ना किया जाए तो, उससे होने वाली जटिलताओं को रोकने के लिए ऑपरेशन किया जा सकता है:

  • अंग काटना:
    यदि गंभीर रेनॉड डिजीज के कारण उंगलियों पर छाले बन गए हैं और फिर गैंग्रीन विकसित हो गया है। तो ऑपरेशन की मदद से अंग के प्रभावित हिस्से को काटना जरूरी हो सकता है।
     
  • फेफड़ों को प्रत्यारोपण करना:
    जिन लोगों के फेफड़ों की धमनियों में खून का दबाव अधिक बढ़ गया है जिसे पल्मोनरी हाइपरटेंशन भी कहते हैं। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन की मदद से मरीज का लंग ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है।

(और पढ़ें - फेफड़ों में इन्फेक्शन का इलाज​)

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त्वग्काठिन्य (स्क्लेरोडर्मा) की जटिलताएं - Scleroderma Complications in Hindi

त्वग्काठिन्य से क्या जटिलताएं होती है?

स्क्लेरोडर्मा से निम्नलिखित जटिलताएं हो सकती है:

  • त्वचा मोटी व कठोर होने के कारण जोड़ व मांसपेशियां पूरी तरह से ना हिला पाना व अन्य समस्याएं होना।
  • फेफड़ों के ऊतकों में निशान बन जाना इस स्थिति को पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है। इस स्थिति में फेफड़े पूरी तरह से काम करना बंद कर देते हैं, सांस लेने व व्यायाम करने की क्षमता भी कम हो जाती है।
  • किडनी में स्कार ऊतक बनने व रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने के कारण किडनी खराब होना। 
  • मुंह की मांसपेशियों गंभीर रूप से सख्त व कठोर हो जाना, जिससे आपका मुंह पूरी तरह से खुल नहीं पाता और आपको दांतों को ब्रश करने आदि में कठिनाई होने लगती है।
  • स्क्लेरोडर्मा से ग्रस्त लोग पर्याप्त मात्रा में लार नहीं बनाते हैं, जिस कारण से उनके दांतों में सड़न होने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है।
  • स्क्लेरोडर्मा से यौन संबंधी विकार भी हो जाते हैं, जैसे पुरुषों में स्तंभन दोष और महिलाओं में योनि संकुचित हो जाना या चिकनापन कम हो जाना। (और पढ़ें -​ नपुंसकता के लिए योग)
  • अंडरएक्टिव थायराइड ग्रंथि होने पर हार्मोन में बदलाव होने लग जाते हैं, जिससे मेटाबॉलिज्म भी कम हो जाता है।  (और पढ़ें -​ थायराइड में क्या खाना चाहिए)
  • पाचन संबंधी समस्याएं भी स्क्लेरोडर्मा से जुड़ी हो सकती हैं जिससे एसिड रिफ्लक्स व निगलने में कठिनाई आदि जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  • स्क्लेरोडर्मा से हृदय, गुर्दे व फेफड़ों संबंधी गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनके कारण मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।

(और पढ़ें - हृदय रोग के लक्षण)



संदर्भ

  1. Scleroderma Foundation, Danvers, MA. [Internet] What is scleroderma?
  2. National Institutes of Health; [Internet]. U.S. Department of Health & Human Services; Scleroderma.
  3. healthdirect Australia. Scleroderma. Australian government: Department of Health
  4. MedlinePlus Medical Encyclopedia: US National Library of Medicine; Scleroderma
  5. National Institute of Arthritis and Musculoskeletal and Skin Diseases [Internet]. National Institute of Health; Scleroderma.
  6. Better health channel. Department of Health and Human Services [internet]. State government of Victoria; Scleroderma