स्वाइन फ्लू - Swine Flu in Hindi

written_by_editorial

July 19, 2017

August 30, 2023

स्वाइन फ्लू
स्वाइन फ्लू

स्वाइन फ्लू क्या है?

साल 2009 में स्वाइन फ्लू एक महामारी के रूप में आया था, लेकिन इसे आज बस एक आम तरह का फ्लू वायरस माना जाता है। हर साल टीकाकरण करके स्वाइन फ्लू को रोका जा सकता है। स्वाइन फ्लू के लक्षण और उपचार, एक अन्य सामान्य फ्लू वायरस के जैसे ही होते हैं और अन्य सामान्य फ्लू वायरस के जैसे ही फैलते हैं।

स्वाइन फ्लू को H1N1 फ्लू भी कहते हैं क्योंकि यह H1N1 वायरस से होता है। सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक समान ही होते हैं। इस वायरस की शुरुआत सूअर से होती है जिसके बाद यह एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। जब 2009 में स्वाइन फ्लू वायरस को इंसान में पाया गया तब इस वायरस ने एक महामारी का रूप ले लिया था। 

अगस्त 2010 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वाइन फ्लू महामारी को खत्म धोषित कर दिया था। तब से H1N1 वायरस को एक सामान्य फ्लू वायरस की तरह ही माना जाता है। H1N1 वायरस अन्य फ्लू वायरस के जेसै ही संक्रमित होता है। 

2009-10 का महामारी स्वाइन फ्लू

अप्रैल 2009 में इस वायरस की पहचान सबसे पहले मैक्सिको में की गई और ये स्वाइन फ्लू के नाम से जाना गया क्योंकि ये सुअर को प्रभावित करने वाले फ्लू वायरस के समान ही था। ये वायरस तेज़ी से एक देश से दूसर देश में फैलता गया क्योंकि ये एक नये किस्म का फ्लू वायरस था क्योंकि युवकों की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) इससे लड़ने में सक्षम नहीं थी और कई युवक इसकी चपेट में आए।

वर्तमान में स्वाइन फ्लू का प्रकोप

H1N1 A वायरस अब मौसम-आधारित वायरस हो गया है जो कि हर सर्दी के मौसम में फैलते हैं। यदि आप हाल ही में फ्लू की चपेट में आ चुके हैं तो सम्भवता वह इस वायरस की वजह से ही हुआ था।

2009-10 में स्वाइन फ्लू जितना गंभीर संक्रमण था अब उसका प्रभाव उतना नहीं है और इससे डरने की ज़रूरत नहीं है - बस नीचे बताई सावधानियां बरते और ज़रा से भी लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 

स्वाइन फ्लू के लक्षण - Swine Flu Symptoms in Hindi

स्वाइन फ्लू के लक्षण

स्वाइन फ्लू के शुरूआती लक्षण का पता एक से चार दिन में लग पाता है। इस वायरस से संपर्क में आने के बाद वायरस की ऊष्मायन अवधि (इंक्युबेशन पीरियड; incubation period) लगभग एक से चार दिन होती है, और औसतन दो दिन। इसके लक्षण एक से दो सप्ताह तक बने रहते हैं और अगर कोई व्यक्ति गंभीर रुप से संक्रमित है तो इसकी अवधि बढ़ भी सकती है। 

स्वाइन फ्लू के लक्षण कई अन्य प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस के जैसे ही होते है। इसमें यह लक्षण देखने को मिलते हैं -

  1. बुखार (100F या इससे अधिक)। (और पढ़ें – बुखार के घरेलू उपचार)
  2. खांसी (आम तौर पर सूखी खाँसी)।
  3. नाक बहना।
  4. थकान। (और पढ़ें - थकान दूर करने के घरेलू उपाय)
  5. सिर दर्द। (और पढ़ें - सिर दर्द के घरेलू उपाय)
  6. कई संक्रमित रोगियों में गले में ख़राश, लाल चकत्ते, शरीर और मांसपेशियों में दर्द, ठंड लगना, जी मिचलाना और उल्टी आना, दस्त जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
  7. कुछ रोगियों को श्वसन संबंधी लक्षण भी हो सकते हैं जैसे सांस लेने में परेशानी। इन हालत में उन्हें सांस लेनें में मदद करने वाले यंत्र की ज़रूरत पड़ती है जैसे वेन्टलेटर। 

अगर संक्रमण बना रहता है तो रोगी को निमोनिया हो सकता है और कुछ रोगी सीज़्यर (seizures) का अचानक बढ़ना। इसका असर व्यक्ति पर थोड़े समय के लिए ही रहता है, मूल रूप से व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता पर असर पड़ता है) भी हो सकता है। इससे मौत अक्सर इसकी वजह से होने वाले फेफड़ों के संक्रमण से होती है। इन रोगियों के लिए उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करने की आवश्यकता होती है। 

हालांकि H1N1 दुनिया भर में महामारी के रूप में जाना जाने लगा, लेकिन कई देशों में मृत्यु दर केवल दुनियाभर में फ्लू से होने वाली मौतों की सामान्य संख्या जितना ही थी। मृत्यु दर को लेकर जिस तरह से भविष्यवाणी कि गई थी, उससे बहुत कम ही रहा। इसकी वजह लोगो में फैली जागरूकता, स्वच्छता पर ध्यान, नये टीकाकरण का अविष्कार, संक्रमित व्यक्तियों का आम लोगों से दूरी बनाए रखने जैसे कुछ मुख्य कारण शामिल थे।

स्वाइन फ्लू के कारण - Swine Flu Causes in Hindi

स्वाइन फ्लू वायरस के कारण होता है। इंफ्लूएनजा A H1N1 इसका सबसे आम प्रकार है, और इससे सिर्फ़ सूअर ही नहीं बल्कि मनुष्य भी संक्रमित हो सकते हैं। हालांकि AH1N1 स्वाइन फ्लू वायरस, H1N1 मानव वायरस से अलग है।

इंफ्लूएनजा वायरस लगातार अपने आप में में बदवाल करते हैं (अपने जीन (genes) बदल कर)। इस प्रक्रिया को म्यूटेशन (mutation) या परिवर्तन कहते हैं। जब स्वाइन फ्लू वायरस मानव शरीर में पाया जाता है, इस स्थिति को वायरस द्वारा "प्रजाति लांघ लेना" कहते हैं (jump the species barrier)। इसका मतलब वायरस उत्परिवर्तन कि दशा में है, और इंसान को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि इंसान के पास प्राकृतिक रूप से वायरस से लड़ने कि क्षमता नहीं होती है, जिससे इस वायरस से संक्रमित हो कर बिमार होने की संभावना बढ़ जाती है।

आमतौर पर इंसानों में फ्लू का संक्रमण आसानी से नहीं होता है। हालांकि ईतेहास में इंसानों में इसका संक्रमण समय-समय पर ज़रूर हुआ है। अधिकतर मामलों में इंसानों में इसका संक्रमण सीधे सूअर से ही हुआ है। ऐसे मामले ज़्यादातर उन्ही लोगों में पाए गए हैं जो सूअर से सीधे संपर्क में आते हैं - जैसे कि जो लोग सूअर फार्म या बूचड़खानों में काम करते हैं। और संक्रमण दूसरी दिशा में भी होता है - यानि  इंसान भी सूअर को इंसानी फ्लू वायरस से संक्रमित करते हैं।

इंसान से इंसान में स्वाइन फ्लू का संक्रमण भी होता है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि लोगों में वायरस का संक्रमण कितना आसानी से होता है। लेकिन यह माना जाता है कि वायरस मौसमी इन्फ्लूएंजा के समान ही फैलता है। खांसी और छींक के माध्यम से यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तब संक्रमित होतें हैं जब वायरस आंख, नाक, मुंह से शरीर में प्रवेश कर जाता है। ये वायरस कुछ सतहों पर भी जम सकते हैं, जैसे दरवाज़े कि कुड़ी पर, एटीएम के बटन में, काउंटर आदि में। जब कोई इन वस्तुओं को स्पर्श करता है, और उसके बाद अपने आंख, मुंह, नाक को छूता है, तो वो संक्रमित हो जाता है।

आप सूअर का मांस खाने से स्वाइन फ्लू से संक्रमित नहीं होगे यदि सूअर का मांस 71 डिग्री सेलसियस तापमान में पका हो।  

स्वाइन फ्लू से बचाव - Prevention of Swine Flu in Hindi

स्वाइन फ्लू के बचाव

स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए 6 माह से अधिक उम्र के सभी लोगो को टीकाकरण करवाना चाहिए। स्वाइन फ्लू टीकाकरण करवाने से अन्य तीन प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस से रक्षा मिलती है, ख़ासकर फ्लू संक्रमण सीजन के समय।

ये टीकाकरण इन्जेक्शन और नेज़ल स्प्रे (नाक के ज़रिये दवा देने वाला स्प्रे) दोनों रूप में उपलब्ध है। इस स्प्रे को 2 से 49 साल तक के लोग और गैर गर्भवति महिलाएं प्रयोग कर सकती हैं। गर्भवती महिलाओं, 50 साल से अधिक लोगों और 2 साल से कम उम्र के बच्चों, अण्डे से एलर्जी वाले लोगों, अस्थमा के रोगी, कमज़ोर रोगप्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और जो लोग दर्दनिवारक थेरेपी का इस्तेमाल करते हैं, इन सबको नेज़ल स्प्रे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 

टीकाकरण के अलावा इन सब बातों पर अमल करके स्वाइन फ्लू के संक्रमण से बचा जा सकता हैं -

  1. अगर आप स्वाइन फ्लू से संक्रमित हैं तो ये संक्रमण आपकी वजह से किसी दूसरे को हो सकता है। इसलिए आप सही हो जाने के 24 घंटे बाद तक भी घर में ही रहें। 
  2. हाथ बार-बार धोएँ और साबुन का इस्तेमाल करें और अगर आपके पास ये सब नहीं है तो एलकोहॉल-आधारित हाथ धोने वाले सैनेटाइज़र का प्रयोग करें।
  3. अपनी खांसी और छींक को रोकें। जब खांसी या छीक आए तो अपने मुंह और नाक को बंद कर लें। जब आप खाँसें या छीकें तो उस वक़्त निकलने वाले कफ को हाथ और कोहनी से साफ़ न करें।
  4. जितना हो सके भीड़ से दूर रहें। इन परिस्थितियों में स्वाइन फ्लू होने कि संभावना ज़्यादा हो जाती है। यदी आप 65 साल से अधिक हों या आपका 5 साल से कम आयु का बच्चा हो, यदि आप गर्भवती हैं तो, आप किसी लंबे समय से चलती आ रही बिमारी से ग्रसित हों (जैसे अस्थमा) तो ऐसी जगह पर ना जायें जायें जहाँ स्वाइन फ़्लू संक्रमण की ज़रा सा भी संभावना हो क्योंकि आपको संक्रमण होने का ज़्यादा जोखिम होगा।
  5. अगर आपके घर में किसी को स्वाइन फ्लू है तो सावधानी बरतें और उसकी देखभाल के लिए घर के ही किसी सदस्य को उसकी ज़िम्मेदारी दें। 

स्वाइन फ्लू का परीक्षण - Diagnosis of Swine Flu in Hindi

स्वाइन फ्लू निदान की आवश्यकता

स्वाइन फ्लू का निदान निम्न लक्षणों में किया जाता है -

  1. अगर आप किसी एच 1 एन 1 इन्फ्लूएंजा ए से संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क में आएं हैं और आपको 7 दिनों के अंदर तीव्र बुखार और वायुमार्ग के संक्रमण के लक्षण हो जाएँ।
  2. अगर आपने किसी ऐसी जगह सफ़र किया है जहाँ एच 1 एन 1 इन्फ्लूएंजा ए संक्रमण फैला हुआ है और आपको 7 दिनों के अंदर तीव्र बुखार और वायुमार्ग के संक्रमण के लक्षण हो जाएँ।
  3. अगर आपने किसी ऐसी जगह रहते हैं जहाँ एच 1 एन 1 इन्फ्लूएंजा ए संक्रमण फैला हुआ होने की आशंका है और उधर कम से कम एक व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि की जा चुकी है।

स्वाइन फ्लू निदान की पुष्टि

निदान की पुष्टि करने के लिए विशिष्ट प्रयोगशाला परीक्षणों की आवश्यकता होती है जो की संक्रमण के कारण का भी पता लगा सकता है। प्रयोगशाला परीक्षणों में रक्त परीक्षण, छाती एक्स-रे और निम्न परीक्षण शामिल हैं -

1. नियमित रक्त परीक्षण - (Routine blood tests)

वायरल संक्रमण आमतौर पर नियमित रक्त चित्र में कोई बदलाव नहीं लाते हैं। एक जीवाणु संक्रमण के कारण फ्लू जैसे लक्षणों को हेमोग्लोबिन के साथ नियमित रक्त परीक्षण, सफेद रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट की गिनती सहित पूर्ण रक्त की संख्या से इन्कार किया जा सकता है। 

2. चेस्ट एक्स-रे – Chest X-ray

निमोनिया के लक्षण होने पर चेस्ट एक्स-रे कि सलाह दी जाती है। (और पढ़ें – निमोनिया का घरेलू उपचार)

3. नोज या थ्रोट स्वाब - Nose or throat swab

स्वाइन फ्लू के टेस्ट के दौरान नाक या गले के स्वाब टेस्ट के जरिए किया जाता है। जिसमें 15 मिनटों में पता चल जाता है कि A या B प्रकार के इंफ्लुएंजा है या नहीं। रोगी के गले या नाक से संक्रमित सामाग्री का नमूना, बीमार होने के 4 से 5 दिनों के भीतर लिया जाता है क्योंकि यह रोग का सबसे संक्रामक समय होता है और ऐसे समय में संक्रमित व्यक्ति के वायरस को फैलाने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि बच्चे इस संक्रमण को 10 दिन से अधित समय तक भी फैला सकते है। इसके सही कारण का पता लगाने में कुछ अधिक समय लग सकता है। 

फैला हुआ है तो टेस्ट की जरूरत नहीं होती क्योंकि लगभग पक्का ही होता है कि लक्षण स्वाइन फ्लू के ही हैं, और इस स्तिथि में उपचार स्वाइन फ्लू मान कर ही किया जाता है। 

स्वाइन फ्लू का इलाज - Swine Flu Treatment in Hindi

स्वाइन फ्लू का इलाज

स्वाइन फ्लू का उपचार मूल रूप से रोगी की खोई शक्ति लौटने के लिए होता है। इसके लिए निम्न उपचार की सलाह दी जाती है -

  1. बेड रेस्ट
  2. तरल पदार्थ का अधिक सेवन
  3. खांसी को कम करने वाली दवा
  4. बुखार और मांसपेशियों के दर्द के लिए कम करने वाली दवा - ऐन्टीपाइरेटिक (antipyretics) और एनल्जेसिक (analgesics; जैसे एसिटामिनोफेन, नॉन-स्टेरायडल एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAID))  

गंभीर मामलों में रोगी को नसों में हाइड्रेशन और अन्य उपायों कि ज़रूरत होती है। एंटीवायरल पदार्थ और प्रोफिलैक्सिस को भी उपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 

रोगी को घर पर रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जो व्यक्ति संक्रमित हो उसे छूने से बचना चाहिए। हाथ बार-बार धोना चाहिए। रोगी को अपने नाक, मुंह, आंख को छूने से बचना चाहिए।

स्वाइन फ्लू के दौरान कुछ एंटीवायरल ड्रग्स कि सलाह दी जाती है - ओसेल्टामिविर (Oseltamivir जैसे Fluvir) और ज़ानामवीर (Zanamivir जैसे Virenza)। क्योंकि फ्लू वायरस इन दवाओं के प्रतिरोध को विकसित कर सकते हैं। और ये दवाएं उन लोगो के लिए आरक्षित होते हैं जो लोग इस वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित होते हैं। और जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है अगर उन्हें स्वाइन फ्लू हो जाता है तो वह खुद ही इसके संक्रमण से लड़ सकते है। 

स्वाइन फ्लू के जोखिम और जटिलताएं - Swine Flu Risks & Complications in Hindi

स्वाइन फ्लू के लिए जोखिम और कारक

स्वाइन फ्लू जब पहली बार सामने आया तब ये वायरस 5 साल से zyaada उम्र के बच्चों में और yuvakon में बहुत आसानी से संक्रमित होता था। इस वायरस को बहुत ही असामान्य माना गया, क्योंकि इससे पहले आमतौर पर अधिकतर फ्लू वायरस का संक्रमण बूढ़े और bahut chote bachchon में ज़्यादा होता था हालांकि आजकल स्वाइन फ्लू के लक्षण अन्य फ्लू के सामान ही होते हैं। मूल रूप से आपको स्वाइन फ़्लू होने का सबसे ज़्यादा जोखिम तब ही है जब आप किसी ऐसी जगह पर रहते हों या सफ़र कर रहें हों जहाँ बड़ी संख्या में लोग स्वाइन फ्लू से संक्रमित हें।

निम्न लोगो को अगर फ्लू हो जाए तो, उनके गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संंभावना ज़्यादा होती है।

  1. 65 साल से अधिक उम्र वाले।
  2. 5 साल से कम उम्र वाले बच्चे।
  3. युवा वयस्क नवयुवक जो कि 19 साल से कम उम्र के है और लंबे समय से दर्दनिवारक दवाओं  का इस्तेमाल कर रहे हैं।
  4. वो लोग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम  है।
  5. गर्भवती महिला
  6. वे लोग जो क्रोनिक बिमारी से ग्रस्त होते हैं जैसे अस्थमा, ह्रदय से संबधित बिमारी, न्यूरोस्कुल्युलर बिमारी आदि।


संदर्भ

  1. Qi X, Lu C. [Swine influenza virus: evolution mechanism and epidemic characterization--a review]. Wei Sheng Wu Xue Bao. 2009 Sep;49(9):1138-45. PMID: 20030049
  2. National Health Portal [Internet] India; Swine Flu
  3. Center for Disease Control and Prevention [internet], Atlanta (GA): US Department of Health and Human Services; Information on Swine/Variant Influenza
  4. MedlinePlus Medical Encyclopedia: US National Library of Medicine; H1N1 Flu (Swine Flu)
  5. Ministry of Health and Family Welfare. Swine Flu-H1N1 (Seasonal Influenza). Government of India [Internet]