सूखा रोग (रिकेट्स) - Rickets in Hindi

Dr. Anurag Shahi (AIIMS)MBBS,MD

August 29, 2018

September 04, 2021

सूखा रोग
सूखा रोग

सूखा रोग या रिकेट्स क्या है?

सूखा रोग या रिकेट्स एक प्रकार का हड्डियों का विकार होता है जो बचपन में होता है। इस विकार में हड्डियां काफी नरम हो जाती हैं और उनके टूटने, मुड़ने या उनमें कुरूपता आने के जोखिम बढ़ जाते हैं। सूखा रोग का मुख्य लक्षण विटामिन डी की कमी होता है यह रोग कुछ आनुवंशिक स्थितियों के कारण भी हो सकता है।

सूखा रोग के लक्षणों में हड्डियां कमजोर होना, टांगे मुड़ना, मांसपेशियां ढीली पड़ना, शारीरिक विकास में कमी, हड्डियों के फ्रैक्चर बढ़ना, मांसपेशियों में ऐंठन और बौनापन आदि शामिल है। डॉक्टर इस स्थिति की जांच करने के लिए मरीज का शारीरिक परीक्षण तो करते ही हैं साथ ही एक्स-रे और खून में विटामिन डी के स्तर की जांच करने के लिए ब्लड टेस्ट भी किया जाता हैं।

विटामिन डी में कमी पैदा करने वाले जोखिम कारकों के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त करके और इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाकर आप अपने बच्चे में सूखा रोग के प्रभाव से बचाव कर सकते हैं। शरीर के लिए विटामिन डी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त रूप से धूप के संपर्क में आना और विटामिन डी और कैल्शियम में समृद्ध खाद्य पदार्थ भी शामिल करना आवश्यक होता है।

सूखा रोग के ज्यादातर मामलों का इलाज विटामिन डी और कैल्शियम के सप्लीमेंट्स के साथ किया जाता है।डॉक्टर के अनुसार निर्धारित की गई सप्लीमेंट्स की खुराक का पालन करना आवश्यक होता है।

सूखा रोग (रिकेट्स) के लक्षण - Rickets Symptoms in Hindi

सूखा रोग होने पर कौन से लक्षण महसूस होते हैं?

रिकेट्स के लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं:

  • टांग, बाजू, पेल्विस या रीढ़ की हड्डी में दर्द होना या छूने पर दर्द महसूस होना (और पढ़ें - पेडू में दर्द)
  • कलाई, कोहनी और टखनों में सूजन होना क्योंकि इन हड्डियों के सिरे सामान्य से बड़े होते हैं।
  • बच्चों में रेंगने और चलने आदि की क्रियाएं सीखने में सामान्य से अधिक समय लगना
  • छोटा कद रहना या बौनापन
  • हड्डियों में फ्रैक्चर
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • दांतों की कुरूपता जैसे कि
    • दांत विकसित होने में देरी
    • दांत की बाहरी परत (एनेमल) में छेद (और पढ़ें - दांत में दर्द)
    • मसूड़ों में फोड़ा
    • दांतों की संरचना में खराबी (जैसे की टेढ़े-मेढ़े दांत होना आदि)
    • दातों में कैविटी की संख्या में वृद्धि
  • शरीर के ढ़ांचे संबंधी कुरूपता जिसमें निम्न शामिल है:
    • बाहर की तरफ निकला हुआ माथा
    • बाहर की तरफ (विपरीत दिशा में) मुड़ी हुई टांगें
    • छाती की हड्डी का बाहर की तरफ उभरना
    • रीढ़ की हड्डी मुड़ना
    • पेल्विक संबंधी कुरूपता
  • सूखा रोग से ग्रस्त शिशु व बच्चे अक्सर क्रोधी व चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं क्योंकि उनकी हड्डियां कष्टदायक होती हैं। कभी-कभी सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों में गंभीर रूप से कैल्शियम की कमी के लक्षण भी होते हैं, जैसे मांसपेशियों में ऐंठन या मिर्गी आदि। कैल्शियम की कमी के कारण होने वाली मिर्गी अक्सर बच्चों में ही होती है जो एक साल से कम उम्र के होते हैं।

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

यदि आपके बच्चे में रिकेट्स के संकेत दिखाई दे रहे हैं तो उसी समय डॉक्टर से संपर्क करें। यदि बच्चें के विकसित होने की अवधि में इस विकार का इलाज ना हो पाए तो इस स्थिति के कारण बच्चा वयस्क होने पर भी छोटे से कद का ही रह जाएगा। यदि विकार अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो फिर यह एक स्थायी रोग बन सकता है।

सूखा रोग (रिकेट्स) के कारण - Rickets Causes & Risk Factors in Hindi

सूखा रोग किस कारण से होता है?

कैल्शियम और फास्फोरस को अवशोषित करने के लिए आपके शरीर को विटामिन डी की आवश्यकता पड़ती है। यदि बच्चे का शरीर पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त नहीं कर पा रहा या विटामिन डी का उचित रूप से उपयोग करने में उसके शरीर को परेशानी हो रही है, तो सूखा रोग हो सकता है। कभी-कभी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम ना प्राप्त कर पाना या कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण भी रिकेट्स हो सकता है।

विटामिन डी की कमी:

जो बच्चे पर्याप्त मात्रा में नीचे दिए गए दोनों स्त्रोतों से विटामिन डी प्राप्त नहीं कर पाते उनमें विटामिन डी की कमी विकसित हो सकती है:

  • धूप - जब आपकी त्वचा धूप के संपर्क में आती है तो आपका शरीर विटामिन डी का निर्माण करने लगता है। लेकिन बच्चेआमतौर पर आज कल धूप में कम ही समय बिताते हैं। अक्सर धूप में जाने से पहले बच्चों को सनस्क्रीन लगा दी जाती है जिससे सूरज की वे किरणें उनकी त्वचा पर नहीं पड़ पाती जो विटामिन डी बनाने में शरीर की मदद करती हैं। (और पढ़ें -  सूरज की किरणों के फायदे)
  • खाद्य पदार्थ - मछली का तेल, फैट युक्त फिश और अंडे की जर्दी (बीच का हिस्सा) में विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन डी को कुछ अन्य पदार्थों में भी शामिल किया जाता है जैसे दूध और कुछ प्रकार के फलों के रस आदि।

अवशोषण से संबंधित समस्याएं:

कुछ बच्चे कुछ ऐसी मेडिकल स्थितियों के साथ पैदा होते हैं या विकसित होते हैं जो उनके शरीर में विटामिन डी को अवशोषित करने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। कुछ उदाहरण जिनमें निम्न शामिल हैं।

सूखा रोग का जोखिम कब बढ़ जाता है?

  • सांवली त्वचा - गौरी त्वचा के मुकाबले काली त्वचा धूप पर काफी कम प्रतिक्रिया दे पाती है, जिससे उनमें कम मात्रा में विटामिन डी का निर्माण हो पाता है।
  • गर्भावस्था के दौरान महिला में विटामिन डी की कमी - जिस मां में विटामिन डी की काफी कमी हो, ऐसी माताओं से पैदा होने वाले बच्चें अक्सर सूखा रोग के लक्षणों के साथ पैदा होते हैं या जन्म लेने के कुछ महीने बाद इनमें लक्षण विकसित होने लग जाते हैं। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में क्या खाना चाहिए)
  • आर्थिक परेशानी - गरीब घरों में पैदा होने वाले बच्चों में रिकेट्स रोग विकसित होने के जोखिम अत्यधिक होते हैं क्योंकि ये बच्चे पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं प्राप्त कर पाते।
  • भौगोलिक स्थिति - जो बच्चे एेसे भौगोलिक स्थानों पर रहते हैं जहां पर कम धूप आ पाती है उनमें भी सूखा रोग होने के जोखिम अधिक होते हैं।
  • समय से पहले जन्म लेना - जो बच्चे गर्भ में पूरा समय लिए बिना ही पैदा हो जाते हैं उन बच्चों में भी रिकेट्स रोग विकसित होने के जोखिम हो सकते हैं।(और पढ़ें - समय से पहले बच्चे का जन्म)
  • दवाएं - कुछ प्रकार की एंटी सीज़र (मिर्गी रोकने वाली दवाएं) और एंटीरोट्रोवायरल दवाएं और एचआईवी में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं आदि भी विटामिन डी का उपयोग करने की क्षमता में हस्तक्षेप करती हैं और शरीर को पर्याप्त विटामिन डी नहीं लेने देती हैं। 
  • मां का दूध - स्तन के दूध में पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं होता जो रिकेट्स की रोकथाम कर सके। जो बच्चे सिर्फ स्तनपान पर निर्भर हैं उनको विटामिन के ड्रॉप्स दिए जाने चाहिए। (और पढ़ें - मां के दूध के फायदे)
  • शरीर ढ़का होना - जो लोग धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से अपने शरीर के ज्यादातर हिस्से को ढ़ंक कर रखते हैं उमनें भी रिकेट्स विकसित होने के जोखिम हो सकते हैं।
  • अक्षमता - बीमार, विकलांग और अन्य ऐसे लोग जो किसी कारण से धूप आदि में समय नहीं बिता पाते।
  • मां में मौजूद कमी - विटामिन डी में कमी वाली महिला से पैदा होने वाले बच्चें
  • भोजन - शाकाहारी और डेयरी-मुक्त आहारों का सेवन करने वाले लोग। (और पढ़ें - आयुर्वेद के अनुसार शाकाहारी भोजन के फायदे)
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सूखा रोग (रिकेट्स) से बचाव - Prevention of Rickets in Hindi

सूखा रोग विकसित होने से बचाव कैसे करें?

रिकेट्स रोग होने से रोकथाम करने का सबसे बेहतर तरीका ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन डी मौजूद हो।

नियमित रूप से थोड़ा बहुत धूप के संपर्क में आकर भी रिकेट्स से बचाव किया जा सकता है। सूखा रोग की रोकथाम करने के लिए आपको सिर्फ अपने हाथों और चेहरे को धूप के संपर्क में लाना जरूरी होता है। ऐसा आप वसंत और गर्मी के महीनों के दौरान दिनों में कर सकते हैं। ध्यान दें कि आप इसे एक हफ्ते में 2 से 4 बार कर सकते हैं।

ज्यादातर वयस्क पर्याप्त रूप से धूप के संपर्क में आ जाते हैं। यह याद रखना भी जरूरी है कि धूप में अत्यधिक समय रहने से आपकी त्वचा भी क्षतिग्रस्त हो सकती है। इसलिए आपको किसी वजह से लंबे समय तक धूप में रहना पड़े है तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन कई बार सनस्क्रीन का इस्तेमाल करने से शरीर विटामिन डी का उत्पादन करने वाली किरणों के संपर्क में नहीं आ पाता। इसलिए विटामिन से भरपूर खाद्य पदार्थों या विटामिन डी के सप्लीमेंट्स का सेवन करना भी काफी लाभकारी हो सकता है।

(और पढ़ें - सनस्क्रीन कैसे चुनें)

मछली को विटामिन डी में सबसे समृद्ध खाद्य पदार्थ माना जाता है। विटामिन डी से भरपूर कुछ अन्य खाद्य पदार्थइस प्रकार हैं:

खाद्य पदार्थ जिनमें विटामिन डी को कृत्रिम रूप से शामिल किया गया है (फोर्टिफाइड)

ये सभी रोकथाम के उपाय रिकेट्स विकसित होने को जोखिम को काफी महत्वपूर्ण रूप से कम कर देते हैं।

सूखा रोग (रिकेट्स) का परीक्षण - Diagnosis of Rickets in Hindi

सूखा रोग की जांच कैसे की जाती है?

एक शारीरिक परीक्षण की मदद से हड्डियों में दर्द व टेंडरनेस (छूने पर दर्द होना) का पता लगाया जा सकता है। लेकिन जोड़ों और मांसपेशियों संबंधी समस्याओं का पता नहीं लगाया जा सकता।

परीक्षण के दौरान डॉक्टर बच्चे की हड्डियों को धीरे-धीरे दबाकर उनमें किसी प्रकार की असामान्यता को देखते हैं। वे बच्चे के निम्न अंगों की विशेष रूप से जांच करते हैं:

  • खोपड़ी
  • टांगे
  • छाती
  • कलाई व टखने

ये ऊपरोक्त हड्डियां रिकेट्स के कारण होने वाली असामान्यता का संकेत दे सकती हैं:

प्रभावित हड्डियों के एक्स-रे की मदद से हड्डियों की कुरूपता (आकार बिगड़ने) की जांच की जाती है। ब्लड टेस्ट और यूरिन टेस्ट की मदद से सूखा रोग के परीक्षण की पुष्टी की जाती है और उपचार कैसे काम कर रहा है इस पर भी नजर रखी जाती है।

सूखा रोग का परीक्षण करने के लिए निम्न टेस्ट किये जा सकते हैं:

  • ब्लड टेस्ट
  • हड्डियों का एक्स-रे (और पढ़ें - बोन डेंसिटी स्कैन)
  • एल्कलाइन फॉस्फेट टेस्ट (ALP)
  • सीरम फास्फोरस टेस्ट
  • एएलपी आईसोएन्जाइम टेस्ट
  • पैराथायरॉइड हार्मोन टेस्ट
  • यूरिन कैल्शियम टेस्ट (और पढ़ें - यूरिन टेस्ट)
  • हड्डियों की बायोप्सी (इसकी जरूरत बहुत कम पड़ती है)

सूखा रोग (रिकेट्स) का इलाज - Rickets Treatment in Hindi

रिकेट्स रोग का उपचार कैसे किया जाता है?

सूखा रोग के उपचार का मुख्य लक्ष्य इसके लक्षणों को कम एनं खत्म करना तथा इसको जन्म देने वाली परिस्थिती के कारण को ठीक करना है। इस रोग के फिर से होने की रोकथाम करने के लिए इसके कारण का इलाज करना बहुत जरूरी होता है।

यदि सूखा रोग खराब आहार के कारण हुआ है तो मरीज को रोजाना कैल्शियम और विटामिन डी के सप्लीमेंट्स दिए जाने चाहिए और वार्षिक रूप से विटामिन डी इंजेक्शन लगाया जाना चाहिए। इसके साथ साथ मरीज को विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए।

कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन डी आदि में से जिस पोषक तत्व की पीड़ित में कमी हैं उनकी आपूर्ति करने से भी रिकेट्स के कारण पैदा होने वाले ज्यादातर लक्षणों को कम किया जा सकता है। विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों में प्रोसेस्ड दूध व मछली का लीवर आदि शामिल हैं।

आनुवंशिक कारणों से हुए रिकेट्स का इलाज करते समय मरीज के लिए फास्फॉरस दवाएं और एक्टिव विटामिन डी हार्मोन्स आदि लिखे जाते हैं।

यदि सूखा रोग किसी अंतर्निहित (अंदरुनी) कारण से हुआ है, जैसे की किडनी रोग आदि, तो इन रोगों को मैनेज करना और इनका पूरा इलाज करने की आवश्यकता होती है।

उपचार के दौरान मरीज को थोड़ा बहुत धूप के संपर्क में आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यदि सूखा रोग किसी मेटाबॉलिज्म संबंधी समस्या के कारण हुआ है, तो डॉक्टर को मरीज के लिए विटामिन डी के सप्लीमेंट्स लिखने पड़ते हैं।

हड्डियों की पोजिशनिंग या ब्रेसिंग की मदद से हड्डियों में कुरूपता आने से रोकथाम की जा सकती है। कुछ कंकाल संबंधी कुरूपताओं (शरीर के आकार में मौजूद बेढ़ंगेपन) को ठीक करने के लिए भी सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

(और पढ़ें - बच्चों की देखभाल)

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सूखा रोग (रिकेट्स) की जटिलताएं - Rickets Complications in Hindi

सूखा रोग होने से अन्य क्या परेशानियां हो सकती हैं?

रिकेट्स से होने वाली कुछ संभावित जटिलताएं इस प्रकार हैं:

  • लंबे समय (दीर्घकाल) से कंकाल में दर्द (शरीर के ढ़ांचे में दर्द) 
  • कंकाल संबंधी कुरूपताएं (शरीर के आकार में बेढ़ंगापन) 
  • कंकाल में फ्रैक्चर, जो बिना किसी कारण के हो सकता है
  • कुछ दुर्लभ मामलों में रिकेट्स के कारण हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं (और पढ़ें - दिल की कमजोरी के लक्षण)
  • विटामिन डी में कमी के बाद खून में कैल्शियम का स्तर गंभीर रूप से कम होना, जिससे मांसपेशियों में ऐंठन, मिर्गी और सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। (और पढ़ें - सांस लेने में तकलीफ हो क्या करें)


संदर्भ

  1. National Health Service [Internet]. UK; Rickets and osteomalacia.
  2. Manisha Sahay, Rakesh Sahay. Rickets–vitamin D deficiency and dependency. Indian J Endocrinol Metab. 2012 Mar-Apr; 16(2): 164–176. PMID: 22470851
  3. Behzat Özkan. Nutritional Rickets . J Clin Res Pediatr Endocrinol. 2010 Dec; 2(4): 137–143. PMID: 21274312
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  7. Better health channel. Department of Health and Human Services [internet]. State government of Victoria; Rickets

सूखा रोग (रिकेट्स) के डॉक्टर

Dr. Narayanan N K Dr. Narayanan N K एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विज्ञान
16 वर्षों का अनुभव
Dr. Tanmay Bharani Dr. Tanmay Bharani एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विज्ञान
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सूखा रोग (रिकेट्स) की ओटीसी दवा - OTC Medicines for Rickets in Hindi

सूखा रोग (रिकेट्स) के लिए बहुत दवाइयां उपलब्ध हैं। नीचे यह सारी दवाइयां दी गयी हैं। लेकिन ध्यान रहे कि डॉक्टर से सलाह किये बिना आप कृपया कोई भी दवाई न लें। बिना डॉक्टर की सलाह से दवाई लेने से आपकी सेहत को गंभीर नुक्सान हो सकता है।