जिंजीवाइटिस क्या है?
हममें से अधिकांश लोगों ने अपने जीवनकाल में जिंजीवाइटिस की मामूली समस्या को महसूस किया होगा। यह मसूड़ों में होने वाली सूजन है, जो आमतौर पर जीवाणु (बैक्टीरिया) संक्रमण के कारण होती है। यदि इसका उपचार न किया जाए, तो इसका संक्रमण और भी गंभीर हो सकता है, जिसे पेरिओडोन्टाइटिस (Periodontitis) कहा जाता है।
यह रोग दांतों को सहारा देने वाले ऊतकों को नष्ट कर देता है, जिसमें मसूड़े, मुंह के लिगामेंट्स और दांत के सॉकेट्स शामिल हो सकते हैं।
जिंजीवाइटिस मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं – एक्यूट, आवर्ती (Recurrent), क्रोनिक।
(और पढ़ें - दांतों के दर्द का इलाज)
आपके दांतों पर गंदगी (प्लाक) जमा होने के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण जिंजीवाइटिस होता है। प्लाक एक चिपचिपा पदार्थ है, जो बैक्टीरिया, बलगम और भोजन के बचे हुए छोटे टुकड़ों से बनता है। यह दांतों के खुले हुए हिस्सों पर इकट्ठा हो जाता है। यह दांतों की सड़न का भी एक प्रमुख कारण है।
यदि आप प्लाक को नहीं हटाते हैं तो यह टार्टर या कैलकुलस (Tartar or calculus) नामक एक कठोर पदार्थ में बदल जाता है, जो दांत के आधार (मसूड़ों की जोड़ पर) में फंस जाता है। प्लाक और टार्टर मसूड़ों में जलन और तकलीफ पैदा करते हैं। जीवाणु (Bacteria) और उनके द्वारा उत्पन्न किए गए विषाक्त पदार्थ मसूड़ों में संक्रमण, सूजन और उनके कमजोर होने का कारण बनते हैं। मसूड़ों में सूजन की समस्या को गंभीरता से लेना और इसका तुरंत इलाज करवाना जरुरी होता है।
जिंजीवाइटिस और पेरिओडोन्टाइटिस वयस्कों में होने वाली दांतों की क्षति के प्रमुख कारण हैं। मुंह के अंदर की स्वच्छता का ध्यान न रखना मसूड़ों की सूजन का सबसे आम कारण है।
मुंह के अच्छे स्वास्थ्य से जुड़ी आदतें, जैसे– दिन में कम से कम दो बार ब्रश करना और नियमित रूप से दांतों की जांच करवाने से, जिंजीवाइटिस की समस्या को रोका या कम किया जा सकता है।
(और पढ़ें - दांतों में झनझनाहट क्यों होती है)
नेशनल ओरल हेल्थ सर्वे (राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण), डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, 2004 -
राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, पेरियोडोंटल रोग का प्रसार उम्र के साथ बढ़ता जाता है। सर्वेक्षण के अनुसार, इसका प्रसार 12,15, 35-44 और 65-74 आयु के लोगों में क्रमशः 57%, 67.7%, 89.6% और 79.9% रहा, (5 वर्षीय बच्चों में पीरियोनैंटल बीमारी का मूल्यांकन नहीं किया जाता)। बुजुर्गों में इसके प्रसार के कम होने का कारण उनमें दांतों की कमी हो सकती है।
35-44 आयुवर्ग के लोगों में 17.5% और 65-74 आयुवर्ग के लोगों में 21.4% मध्य श्रेणी का पेरिओडोन्टाइटिस देखा गया।
गंभीर बीमारी वाला पेरियोडोंटल रोग मतलब कम से कम एक दांत की 6mm से अधिक गहराई होना 35-44 आयुवर्ग के लोगों में 7.8% और 65-74 आयु के लोगों में 18.1% रहा।
गौरतलब है कि इसमें कोई भी लिंगभेद नहीं देखा गया और अधिकतर ग्रामीण लोगों में इसका अधिक प्रसार (ज्यादा संख्या में मौजूदगी) देखा गया।
(और पढ़ें - दांतों में कीड़े का इलाज)
"नियमित रूप से दाँतों की सफाई" समूह ने बहुत ही अच्छे ढंग से पेरियोडोंटल रोग के कम होने की बात को दिखाया, साथ ही यह भी बताया कि टूथब्रश का उपयोग, उंगली से की गयी सफाई से काफी बेहतर है। यह सर्वेक्षण मूल रूप से एक प्रसार सर्वेक्षण था, जिसमें जोखिम कारकों पर कम जोर दिया गया था। इस सर्वे ने राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर एक विश्वसनीय आधारभूत विवरण प्रदान किया।